F Satya Vratham Satya Param /सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं - bhagwat kathanak
Satya Vratham Satya Param /सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं

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Satya Vratham Satya Param /सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं

Satya Vratham Satya Param /सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं

Satya Vratham Satya Param /सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं


सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितं च सत्ये । 
सत्यस्य सत्यमृत सत्य नेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नार्तिहरे:।। १०/२/२६
देवता कहते हैं- प्रभु आपका संकल्प सत्य है ,देवता बड़े स्वार्थी हैं वह भगवान को याद दिला रहे हैं, प्रभु आपने प्रतिज्ञा की थी जन्म लेकर मैं कंस को मारूंगा इसलिए आप अपनी प्रतिज्ञा को भूलना मत |सत्यपरं- सत्य ही आपकी प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन है |

त्रिसत्यं- जगत की उत्पत्ति के पूर्व, प्रलय के पश्चात और जगत की स्थिति इन तीनों कालों में आप ही सत्य रूप हैं | पृथ्वी,जल,तेज,वायु और आकाश में दिखाई देने वाले सत्य रूप जो पंचमहाभूत हैं,उनके कारण भी आप ही हैं |आप उनमें अंतर्यामी रूप से विराजमान हैं | आप सत्य के भी सत्य हैं | सत्य स्वरूप परमात्मा की हम शरण ग्रहण करते हैं |

Satya Vratham Satya Param /सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं


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