श्रवणाद् दर्शनाद् /shravanad darshanad
श्रवणाद् दर्शनाद् ध्यानान्मयि भावोनुकीर्तनात् |
न तथा सन्निकर्षेण प्रतियात ततो गृहान् |
मेरी कथाओं का श्रवण करने से , मेरा दर्शन करने से, मेरे स्वरूप का ध्यान करने से और मेरे नामों का कीर्तन करने से जिस प्रकार मुझ में प्रेम उत्पन्न होता है , उस प्रकार पास में रहने से नहीं होता |
श्रवणाद् दर्शनाद् /shravanad darshanad
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