Shrimad Bhagwat Puran Phlok pdf
भागवत कथा,अष्टम स्कंध
राजा परीक्षित सुखदेव जी से पूछते हैं- गुरुदेव मैंने स्वयंभू मनु के वंश का विस्तारपूर्वक वर्णन सुना है अब आप अन्य मनुओं का वर्णन सुनाइए ,,
परिक्षित, छीर सागर से घिरा हुआ एक त्रिकूट नामक एक विशाल पर्वत था, जिसकी गुफाओं कंदरा में अनेकों देवता साधु संत महात्मा अनेकों सिद्ध चारण भ्रमण करते थे |
जो इस जगत के मूल कारण हैं | समस्त प्राणियों के हृदय में पुरुष रूप से विराजमान हैं,जगत के एकमात्र स्वामी और जिनके कारण संपूर्ण संसार में चेतना व्याप्त है उन परम ब्रह्म परमेश्वर को मेरा नमस्कार है, मैं उनका ध्यान करता हूं |
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रत्नाकरस्तव गृहं पत्नी च पद्मा
देयं किमस्ति तुभ्यं जगदीश्वराय ।
आभीर वाम नयना हृतमानसाय
दत्तं मनो मे यदुपते कृष्णा गृहाण।।
अगर मैं रत्न प्रदान करुं तो रत्नाकर समुद्र इनका निवास स्थान है ,यदि मैं इन्हें धन समर्पित करुं तो धन की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी इनकी पत्नी हैं |इसलिए इन्हें क्या दूं हां इनके पास मन नहीं है क्योंकि मन तो ब्रज गोकुल की गोप कुमारियों ने चुरा लिया है |
इसने गजेंद्र ने अपना मन रूपी पुष्प, मन रूपी सुमन ,भगवान श्री हरि के चरणों में समर्पित किया और कहा-- हे अखिल जगत के गुरु भगवान नारायण मैं आपको बारंबार नमस्कार करता हूं |
परिक्षित एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान नारायण का दर्शन करके बैकुंठ लोक से आ रहे थे मार्ग में उन्होंने देवराज इंद्र को देखा तो भगवान की प्रसादी माला उन्हें भेंट की |
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देवताओं अपना काम बनाने के लिए सत्रु से भी मित्रता कर लेनी चाहिए,हां काम निकल जाने के बाद अहिमूषक न्याय का आश्रष ले सकते हैं |
देवदेव महादेव भूतात्मन् भूतभावन।
त्राहि न: शरणापन्नां स्त्रैलोक्य दहनाद् विषात् ।। ८/७/२१
हे देवाधिदेव महादेव आप प्राणियों की रक्षा करने वाले हैं, यह विष इस त्रिलोकी को दहन कर देगा इससे हमारी रक्षा कीजिए,हम आप की शरण में हैं |
माता लक्ष्मी के प्रकट होते ही दसों दिशाएं प्रकाशित हो गयीं | देवता दानव ऋषि मुनि मनुष्य सभी ने उन्हें प्राप्त करना चाहा सभी पंक्ति बद्ध हो बैठ गए हाथ में वरमाला ले माता लक्ष्मी अपने अनुरुप वर ढूंढने लगी,...
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ब्रह्मचर्य का पालन करें ,पृथ्वी में सयन करें ,तीनों समय स्नान करें ,झूठ ना बोले ,जब वृत पूर्ण हो जाए तो तेरहवें दिन भगवान का अभिषेक करें, हवन करायें कम से कम बारह ब्राह्मणों को भोजन कराएं |
प्रभो आपको देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रम्हर्षियों की तपस्या मूर्तिमान होकर मेरे सामने आ गई हो, मैं आपको नमस्कार करता हूं | आपका स्वागत है, आपके कारण हमारे पितर आज तृप्त हो गए | हमारा कुल पवित्र हो गया, और मेरा यज्ञ सफल हो गया |
असन्तोषी ब्राह्मण का नाश हो जाता है और बलि धन का उतना ही संग्रह करना चाहिए कि जितने आवश्यक्ता हो,,
गोब्राह्मणार्थे हिंसायां नानृतं स्याज्जुगुप्सितम् ।। ८/१९/४३
आठ स्थान पर बोला गया झूठ पर कोई पाप नहीं लगता---- पहला स्त्रियों को प्रसन्न करने के लिए, दूसरा हास्य परिहास में ,तीसरा विवाह में कन्या आदि की प्रशंसा करते हुए ,चौथा अपनी आजीविका की रक्षा के लिए, पांचवा अपने प्राण संकट में उपस्थित होने पर ,छठवां गाय की रक्षा के लिये, सातवां ब्राह्मण की रक्षा के लिए और आठवां किसी को मृत्यु से बचाने के लिए बोला गया झूठ से किसी प्रकार का पाप नहीं होता |
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असत्य से बडा कोई अधर्म नहीं पृथ्वी सब कुछ सह सकती है परंतु झूठे व्यक्ति का भार उनसे नहीं सहा जाता |
बलि तू अपने आप को बड़ा पंडित मान रहा है मेरी आज्ञा कि तुमने उपेक्षा की है इसलिए मैं तुझे श्राप देता हूं शीघ्र ही तू अपने ऐश्वर्य से हाथ धो बैठेगा |
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