अभूतपूर्वं मम भावि किं वा /abhut purvam mam bhavi shloka
अभूतपूर्वं मम भावि किं वा सर्वं सहे मे सहजं हि दुःखम्।
किन्तु त्वदग्रे शरणागतानां पराभवो नाथ न तेऽनुरूपः॥२३॥*
[अब इस समय यदि आप मेरा दु:ख दूर नहीं करते तो] मेरे लिये तो यह कोई नयी बात नहीं है, मैं तो सब सहन कर लूँगा, क्योंकि दु:ख तो मेरे साथ ही उत्पन्न हुआ है; किन्तु आपके सामने शरणागतका पराभव होना आपके योग्य नहीं है-आपको शोभा नहीं देता।॥ २३ ॥