निमजतोऽनन्तभवार्णवान्त /nimajto nanta bhavarna vanta shloka
निमजतोऽनन्तभवार्णवान्तश्चिराय मे कूलमिवासि लब्धः।
त्वयापि लब्धं भगवन्निदानीमनुत्तमं पात्रमिदं दयायाः॥२२॥*
अनन्त महासागरके भीतर डूबते हुए मुझको आज अति विलम्बसे आप तटरूप होकर मिले हैं, और हे भगवन् ! आपको भी आज यह दयाका अनुपम पात्र मिला है ! ।। २२ ॥