न निन्दितं कर्म तदस्ति लोके /na ninditam karma tadasti shloka
न निन्दितं कर्म तदस्ति लोके सहस्त्रशो यन्न मया व्यधायि।
सोऽहं विपाकावसरे मुकुन्द क्रन्दामि सम्प्रत्यगतिस्तवाग्रे॥२१॥*
संसारमें ऐसा कोई निन्दित कर्म नहीं है, जिसको हजारों बार मैंने न किया हो,ऐसा मैं अब फलभोगके समयपर विवश (अन्य साधनहीन) होकर, हे मुकुन्द ! आपके आगे बारम्बार रोता-क्रन्दन करता हूँ ।। २१ ॥