न धर्मनिष्ठोऽस्मि न चात्मवेदी /na dharma nishtho shloka
न धर्मनिष्ठोऽस्मि न चात्मवेदी न भक्तिमांस्त्वच्चरणारविन्दे।
अकिञ्चनोऽनन्यगतिः शरण्यं त्वत्पपादमूलं शरणं प्रपद्ये ॥२०॥*
मैं न धर्मनिष्ठ हूँ, न आत्मज्ञानी हूँ और न आपके चरणोंमें भक्तिमान्ही हूँ; मैं तो अकिञ्चन हूँ, अनन्यगति हूँ और शरणागतिरक्षक आपके चरणकमलोंकी शरण आया हूँ॥ २०॥