निरासकस्यापि न तावदुत्सहे /niras kasyapi shloka
निरासकस्यापि न तावदुत्सहे महेश हातुं तव पादपङ्कजम्।
रुषा निरस्तोऽपि शिशुः स्तनन्धयो न जातु मातुश्चरणौ जिहासति ॥२४॥*
हे महेश्वर ! आप त्याग देंगे तो भी आपके चरणकमलोंके परित्याग करनेका साहस नहीं कर सकता; क्रोधवश गोदीसे अलग किया हुआ भी दूध पीनेवाला शिशु, अपनी माताके चरणोंको कभी नहीं छोड़ना चाहता ॥ २४॥