अचिन्त्यदिव्याद्भुत नित्ययौवन/achintya divya adbhut shloka

 अचिन्त्यदिव्याद्भुत नित्ययौवन/achintya divya adbhut shloka

अचिन्त्यदिव्याद्भुत नित्ययौवन/achintya divya adbhut shloka

अचिन्त्यदिव्याद्भुतनित्ययौवनस्वभावलावण्यमयामृतोदधिम्।

श्रियः श्रियं भक्तजनैकजीवितं समर्थमापत्सखमर्थिकल्पकम्॥४३॥*

जो अचिन्त्य, दिव्य, अद्भुत और नित्य यौवनयुक्त (सदा षोडशवर्षीय) हैं, स्वभावसे ही लावण्यमय अमृतके समुद्र हैं लक्ष्मीजीकी भी शोभा हैं, भक्तजनों के मुख्यजीवनरूप हैं, समर्थ हैं, आपत्तिकालके सखा हैं और याचकजनों के लिये कल्पवृक्ष हैं ॥ ४३ ॥ 

सूक्तिसुधाकर के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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