अपूर्वनाना रसभावनिर्भर/apurva nana ras bhav nirbhara shloka
अपूर्वनानारसभावनिर्भरप्रबुद्धया मुग्धविदग्धलीलया।
क्षणाणुवत्क्षिप्तपरादिकालया प्रहर्षयन्तं महिषीं महाभुजम्॥४२॥*
जो नित्य नूतन नाना प्रकार के [शृङ्गारादि] रसों तथा [विलासादि] भावों से परिपूर्ण एवं विकसित हैं और जिनमें ब्रह्मादिकोंकी आयु भी क्षणमात्र कालके अणुभागके समान बीत जाती है, ऐसी चातुर्य पूर्ण मोहिनी लीलाओं से अपनी महारानी लक्ष्मीजीको आनन्दित करते हुए, आप विशाल बाहुओं से युक्त होकर शोभा पा रहे हैं ॥ ४२ ॥