भवन्तमेवानुचरन्निरन्तरं /bhavanta mevanuchara shloka
भवन्तमेवानुचरन्निरन्तरं प्रशान्तनिश्शेषमनोरथान्तरः।
कदाहमैकान्तिकनित्यकिङ्करः प्रहर्षयिष्यामि सनाथजीवितम्॥४४॥*
ऐसे एक आपका ही निरन्तर अनुसरण करता हुआ अन्य सब मनोरथोंसे सर्वथा रहित और आपका ही ऐकान्तिक नित्यदास होकर मैं इस जीवनको सनाथ मानता हुआ कब आपको सन्तुष्ट करूँगा॥ ४४ ॥