धिगशुचिमविनीतं निर्दयं मामलज्जं /dhig shuchi mavineetam shloka

 धिगशुचिमविनीतं निर्दयं मामलज्जं /dhig shuchi mavineetam shloka

धिगशुचिमविनीतं निर्दयं मामलज्जं /dhig shuchi mavineetam shloka

धिगशुचिमविनीतं निर्दयं मामलज्जं 

परमपुरुष योऽहं योगिवर्याग्रगण्यैः।

विधिशिवसनकाद्यैर्ध्यातुमत्यन्तदूर

तव परिजनभावं कामये कामवृत्तः॥४५॥

हे परम पुरुष ! मुझ अपवित्र, अविनीत, निर्दय और निर्लज्जको धिक्कार है, जो स्वेच्छाचारी होकर भी मैं मुख्य-मुख्य योगीश्वरों तथा ब्रह्मा, शिव और सनकादिके ध्यानमें भी न आ सकनेवाले आपके दुर्लभ परिजन-भावकी कामना करता हूँ ॥ ४५ ॥ 

सूक्तिसुधाकर के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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 धिगशुचिमविनीतं निर्दयं मामलज्जं /dhig shuchi mavineetam shloka


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