अपराधसहस्त्रभाजन पतितं /apradh sahastra bhajanam shloka
अपराधसहस्त्रभाजन पतितं भीमभवार्णवोदरे।
अगति शरणागतं हरे कृपया केवलमात्मसात्कुरु॥४६॥*
हे हरे ! हजारों अपराध करनेवाले, भयङ्कर संसार-समुद्र में पड़े हुए और निराश्रय मुझ शरणागतको आप केवल अपनी कृपासे ही अधीन कर लीजिये ॥ ४६॥
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