अविवेकघनान्धदिङ्मुखे /aviveka ghanandha dingmukhe shloka

 अविवेकघनान्धदिङ्मुखे /aviveka ghanandha dingmukhe shloka

अविवेकघनान्धदिङ्मुखे /aviveka ghanandha dingmukhe shloka

अविवेकघनान्धदिङ्मुखे बहुधा सन्ततदुःखवर्षिणि।

भगवन् भवदुर्दिने पथः स्खलितं मामवलोकयाच्युत॥४७॥*

हे भगवन्! हे अच्युत ! जिसने अविवेकरूपी बादलोंद्वारा दिशाओंको अन्धकाराच्छन्न कर दिया है और जिसके कारण निरन्तर दु:खरूपी वृष्टि हो रही है, उस संसाररूपी दुर्दिनमें मार्गसे गिरे हुए मेरी ओर आप निहार लीजिये॥ ४७॥ 

सूक्तिसुधाकर के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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 अविवेकघनान्धदिङ्मुखे /aviveka ghanandha dingmukhe shloka


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