न मृषा परमार्थमेव मे /na mrisha parmartha shloka
न मृषा परमार्थमेव मे शृणु विज्ञापनमेकमग्रतः।
यदि मे न दयिष्यसे ततो दयनीयस्तव नाथ दुर्लभः॥४८॥*
हे नाथ! इस मेरे एकमात्र विज्ञापनको आप पहले सुन लीजिये, यह झूठी बात नहीं है, सत्य ही है-यदि आप मुझपर दया नहीं करेंगे तो फिर आपको दयापात्र मिलना कठिन ही है॥४८॥
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