तदहं त्वदृते न नाथवान् /tadaham tvadyate na nath shloka
तदहं त्वदृते न नाथवान्मदृते त्वं दयनीयवान्न च ।
विधिनिर्मितमेतदन्वयं भगवन् पालय स्म जीहपः॥४९॥*
हे भगवन् ! तुम्हारे बिना मैं नाथवान् नहीं हूँ और मुझ दीनके बिना आप दीनदयालु नहीं हो सकते; इसलिये विधि-निर्मित इस सम्बन्धको आप निभाइये। इसका. त्याग न होने दीजिये॥ ४९ ॥