F अज्ञानान्धमबान्धवं /agyanandham bandhavam shloka - bhagwat kathanak
अज्ञानान्धमबान्धवं /agyanandham bandhavam shloka

bhagwat katha sikhe

अज्ञानान्धमबान्धवं /agyanandham bandhavam shloka

अज्ञानान्धमबान्धवं /agyanandham bandhavam shloka

 अज्ञानान्धमबान्धवं /agyanandham bandhavam shloka

अज्ञानान्धमबान्धवं /agyanandham bandhavam shloka

अज्ञानान्धमबान्धवं कवलितं रक्षोभिरक्षाभिधैः

क्षिप्त मोहमदान्धकूपकुहरे दुर्हद्भिराभ्यन्तरैः।

क्रन्दन्तं शरणागतं गतधृतिं सर्वापदामास्पदं

मा मा मुञ्च महेश पेशलदृशा सत्रासमाश्वासय॥१०॥

मैं अज्ञानसे अन्धा हो रहा हूँ, बन्धुविहीन हूँ, इन्द्रियरूप राक्षसोंसे भक्षित हो रहा हूँ, अपने आन्तरिक शत्रुओंद्वारा मोह और मदरूप अन्धकूपमें डाल दिया गया हूँ; ऐसे आपत्तिग्रस्त, अधीर, शरणागत और रोते हुए मुझको, हे महेश्वर ! मत भुलाओ, शीघ्र ही अपनी सुकोमल कृपादृष्टि से मुझ भयभीतको ढाढस बँधाओ । १० ॥ 

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 अज्ञानान्धमबान्धवं /agyanandham bandhavam shloka


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