F अमर्यादः क्षुद्रश्चलमति /amaryada chhudra shloka - bhagwat kathanak
अमर्यादः क्षुद्रश्चलमति /amaryada chhudra shloka

bhagwat katha sikhe

अमर्यादः क्षुद्रश्चलमति /amaryada chhudra shloka

अमर्यादः क्षुद्रश्चलमति /amaryada chhudra shloka

 अमर्यादः क्षुद्रश्चलमति /amaryada chhudra shloka

अमर्यादः क्षुद्रश्चलमति /amaryada chhudra shloka

अमर्यादः क्षुद्रश्चलमतिरसूयाप्रभवभूः

कृतघणो दुर्मानी स्मरपरवशो वञ्चनपरः।

नृशंसः पापिष्ठः कथमहमितो दुःखजलधे-

रपारादुत्तीर्णस्तव परिचरेयं चरणयोः ।।५९॥*

भगवन् ! मैं तो मर्यादाका पालन न करनेवाला, नीच, चञ्चलमति और [गुणों में भी दोष- दर्शनरूप] असूयाकी जन्मभूमि हूँ; साथ ही कृतघ्न, दुष्ट, अभिमानी, कामी, ठग,क्रूर और महापापी हूँ; भला, मैं किस प्रकार इस अपार दु:ख-सागरसे पार होकर आपके चरणोंकी परिचर्या करूँ? ॥ ५९॥ 

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 अमर्यादः क्षुद्रश्चलमति /amaryada chhudra shloka


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