अमर्यादः क्षुद्रश्चलमति /amaryada chhudra shloka
अमर्यादः क्षुद्रश्चलमतिरसूयाप्रभवभूः
कृतघणो दुर्मानी स्मरपरवशो वञ्चनपरः।
नृशंसः पापिष्ठः कथमहमितो दुःखजलधे-
रपारादुत्तीर्णस्तव परिचरेयं चरणयोः ।।५९॥*
भगवन् ! मैं तो मर्यादाका पालन न करनेवाला, नीच, चञ्चलमति और [गुणों में भी दोष- दर्शनरूप] असूयाकी जन्मभूमि हूँ; साथ ही कृतघ्न, दुष्ट, अभिमानी, कामी, ठग,क्रूर और महापापी हूँ; भला, मैं किस प्रकार इस अपार दु:ख-सागरसे पार होकर आपके चरणोंकी परिचर्या करूँ? ॥ ५९॥