पिता त्वं माता त्वं /pita tavm mata tvam shloka
पिता त्वं माता त्वं दयिततनयस्त्वं प्रियसुह-
त्वमेव त्वं मित्रं गुरुरपि गतिश्चासि जगताम्।
त्वदीयस्त्वद्भुत्यस्तव परिजनस्त्वद्गतिरहं
प्रपन्नश्चैवं सत्यहमपि तवैवास्मि हि भरः ॥५८॥*
हे हरे! आप ही जगत्के पिता-माता प्रिय पुत्र, प्यारे सुहृद्, मित्र, गुरु और गति हैं, मैं आपका ही सम्बन्धी, आपका ही दास, आपका ही परिचारक, आपको ही [एकमात्र] गति माननेवाला और आपकी ही शरण हूँ, इस प्रकार अब आपहीपर मेरा सारा भार है॥ ५८॥