आनन्द गोविन्द मुकुन्द /anand govinda shloka
आनन्द गोविन्द मुकुन्द राम नारायणानन्त निरामयेति।
वक्तुं समर्थोऽपि न वक्ति कश्चिदहो जनानां व्यसनानि मोक्षे॥८८॥*
आश्चर्य है कि लोगोंको मोक्षकी ओर जानेमें बाधाएँ उपस्थित होती हैं, जो कि बोलनेमें समर्थ होनेपर भी कोई आनन्द, गोविन्द, मुकुन्द, राम, नारायण, अनन्त, निरामय-इस प्रकार नहीं पुकारते ॥ ८८ ॥