भवजलधिगतानां द्वन्द्व /bhav jaladhi gatanam shloka
भवजलधिगतानां द्वन्द्ववाताहतानां
सुतदुहितृकलत्रत्राणभारादितानाम् ।
विषमविषयतोये मज्जतामप्लवानां
भवतु शरणमेको विष्णुपोतो नराणाम्॥८७॥*
जो संसारसागरमें गिरे हुए हैं, [सुख-दु:खादि] द्वन्द्वरूपी वायुसे आहत हो रहे हैं, पुत्र-पुत्री, स्त्री आदिके पालन-पोषणके भारसे आर्त्त हैं और विषयरूपी विषम जलराशिमें बिना नौकाके डूब रहे हैं, उन पुरुषोंके लिये एकमात्र जहाजरूप भगवान् विष्णु ही शरण हों॥ ८७॥