अवबोधितवानिमां यथा /avbodhita vanima yatha shloka
अवबोधितवानिमां यथा मयि नित्यां भवदीयतां स्वयम्।
कृपयैवमनन्यभोग्यतां भगवन् भक्तिमपि प्रयच्छ मे॥५२॥*
हे भगवन् ! जिस प्रकार आपने मुझे अपनी नित्यस्थित भवदीयता (मैं आपका हूँ इस भाव) को स्वयं जनाया, इसी तरह कृपा करके मुझे अपनी अनन्य भक्ति भी दीजिये।। ५२ ।।