तव दास्यसुखैकसङ्गिनां /tav dasya sukhaika sangina shloka
तव दास्यसुखैकसङ्गिनां भवनेष्वस्त्वपि कीटजन्म मे।
इतरावसथेषु मा स्म भूदपि मे जन्म चतुर्मुखात्मना ॥५३॥*
आपके दासत्व-भावका ही सुखानुभव करनेवाले सज्जनोंके घरमें तो मुझे कीट-योनि भी मिले, पर इससे भिन्न तो मुझे ब्रह्माकी योनि भी प्राप्त न हो [यही मेरी प्रार्थना है ॥ ५३॥