सकृत्त्वदाकारविलोकनाशया /sakritva dakar viloka shloka
सकृत्त्वदाकारविलोकनाशया तृणीकृतानुत्तमभुक्तिमुक्तिभिः।
महात्मभिर्मामवलोक्यतां नय क्षणेऽपि ते यद्विरहोऽतिदुस्सहः॥५४॥*
जिन्होंने आपके स्वरूपको एक बार देखनेकी इच्छासे उत्तमोत्तम भोग और मुक्तिको भी तृणवत् त्याग दिया है तथा जिनका क्षणभरका भी वियोग आपके अत्यन्त असह्य है, ऐसे महात्माओंके दृष्टि-पथमें मुझे डाल दीजिये॥ ५४॥