न देहं न प्राणान्न च सुख /na deham na pranan shloka
न देहं न प्राणान्न च सुखमशेषाभिलषितं
न चात्मानं नान्यत्किमपि तव शेषत्वविभवात्।
बहितंर्भूतं नाथ क्षणमपि सहे यातु शतधा
विनाशं तत्सत्यं मधुमथन विज्ञापनमिदम्॥५५॥*
हे नाथ! आपकी दासताके वैभवसे रहित होनेवाले देह, प्राण, सुख, सर्वकामनाएँ, अपनी आत्मा तथा अन्य जो कुछ भी हो उसे क्षणभर भी नहीं सह सकता हूँ, चाहे ये सैकड़ों प्रकारसे नष्ट हो जायँ; हे मधुसूदन ! यह मेरा विज्ञापन सत्य है ॥ ५५ ॥*