चकर्थ यस्या भवनं भुजान्तरं /chakartha yasya bhavanam shloka
चकर्थ यस्या भवनं भुजान्तरं तव प्रियं धाम यदीयजन्मभू।
जगत्समग्रं यदपाङ्गसंश्रयं यदर्थमम्भोधिरमन्थ्यबन्धि च॥३५॥*
आपने अपनी भुजाओंका मध्यभाग (हृदय) ही जिसके लिये निवास-मन्दिर बनाया, जिसकी जन्मभूमि (क्षीरसागर) ही आपका प्रिय वासस्थान है, सारा संसार जिसके कटाक्षोंके आश्रित है ॥३५॥