F स्ववैश्वरूप्येण सदानुभूतया /svavai shvarupena shloka - bhagwat kathanak
स्ववैश्वरूप्येण सदानुभूतया /svavai shvarupena shloka

bhagwat katha sikhe

स्ववैश्वरूप्येण सदानुभूतया /svavai shvarupena shloka

स्ववैश्वरूप्येण सदानुभूतया /svavai shvarupena shloka

 स्ववैश्वरूप्येण सदानुभूतया /svavai shvarupena shloka

स्ववैश्वरूप्येण सदानुभूतया /svavai shvarupena shloka

स्ववैश्वरूप्येण सदानुभूतयाप्यपूर्ववद्विस्मयमादधानया।

गुणेन रूपेण विलासचेष्टितैः सदा तवैवोचितया तव श्रिया॥३६॥*

 जिसके लिये आपने समुद्रका मन्थन और बन्धन किया, जो विश्वरूपसे आपके द्वारा सदा अनुभूत होनेपर भी नूतन-सी विस्मय उत्पन्न करती है, जो रूप, गुण और विलास-चेष्टाओंके द्वारा केवल आपके ही योग्य है॥३६॥

सूक्तिसुधाकर के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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 स्ववैश्वरूप्येण सदानुभूतया /svavai shvarupena shloka


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