सहासीनमनन्तभोगिनि /sahaseen mananta bhogini shloka
सहासीनमनन्तभोगिनि प्रकृष्टविज्ञानबलैकधामनि।
फणामणिवातमयूखमण्डलप्रकाशमानोदरदिव्यधामनि ॥३७॥*
निवासशय्यासनपादुकांशुकोपधानवर्षातपवारणादिभिः
शरीरभेदैस्तव शेषतां गतैर्यथोचितं शेष इतीरिते जनैः॥३८॥*
उस लक्ष्मीजीके साथ आप अनन्त फणोंसे विशिष्ट शेषनागकी शय्यापर विराजमान रहते हैं, जो कि समयानुसार निवास, शय्या, आसन, पादुका, वस्त्र, तकिया और शीतवर्षादिनिवारक छत्रादिरूप नाना शरीरभेदोंके द्वारा आपके शेषत्व (अङ्गभाव) को प्राप्त होनेके कारण लोगोंसे 'शेष' कहे जाते हैं और फणोंकी मणियों के किरण-जालसे अपना उदररूप दिव्य-धाम प्रकाशित किये रहते हैं तथा जो उत्तम ज्ञान और बलके एकमात्र आश्रय हैं ।। ३७-३८॥