चकासतं ज्याकिणकर्कशैः /chakasatam jyakina shloka
चकासतं ज्याकिणकर्कशैः शुभैश्चतुर्भिराजानुविलम्बिभिर्भुजैः ।
प्रियावतंसोत्पलकर्णभूषणश्लथालकाबन्धविमर्दशंसिभिः ॥३१॥*
जो प्रियतमा लक्ष्मीके शिरोभूषण कमलदलादि कर्णभूषणों तथा शिथिल अलक बन्धके विमर्दकी सूचना देनेवाले हैं। [अति कोमल होते हुए भी] शार्ङ्गधनुषकी प्रत्यञ्चाके चिह्नोंसे कठोर हो गये हैं, ऐसे आजानुलम्बी सुन्दर चार भुजदण्डोंसे सुशोभित होनेवाले आपको [मैं कव प्रसन्न कर सकूँगा?] || ३१ ।