विराजमानोज्ज्वलपीतवाससं /viraj manojjval peet shloka
विराजमानोज्ज्वलपीतवाससं स्मितातसीसूनसमामलच्छविम्।
निमग्ननाभिं तनुमध्यमुन्नतं विशालवक्षःस्थलशोभिलक्षणम्॥ ३० ॥*
जिनके अङ्गोंपर निर्मल पीताम्बर शोभा पा रहा है, जिसकी अमल श्यामल कान्ति प्रफुल्लित अतसी-पुष्पके समान सुन्दर है, जिनका देह ऊँचा, नाभि गम्भीर, कटिदेश (कमर) सूक्ष्म और विशाल वक्षःस्थल श्रीवत्सचिह्नसे सुशोभित हो रहा है ऐसे आपको मैं कब अपनी सेवाद्वारा प्रसन्न करूँगा?] ॥ ३०॥