उदग्रपीनांसविलम्बिकुण्डला /udagra pina savilambi kundla shloka
उदग्रपीनांसविलम्बिकुण्डलालकावलीबन्धुरकम्बुकन्धरम् ।
मुखश्रिया न्यक्कृतपूर्णनिर्मलामृतांशुविम्बाम्बुरुहोज्ज्वलश्रियम्।।३२ ।।*
उन्नत और पुष्ट कन्धोंपर लटकते हुए कुण्डल तथा अलकोंसे जिनकी शवसदृश (उन्नत) ग्रीवा मनोहर मालूम होती है; जो अपने मुखकी शोभासे निर्मल पूर्णचन्द्रविम्ब तथा श्वेत कमलकी कान्तिको तिरस्कृत कर रहे हैं, ॥३२।।