प्रबुद्ध मुग्धाम्बुज चारुलोचनं /prabidha mugdhambuja charu lochnam shloka
प्रबुद्धमुग्धाम्बुजचारुलोचनं सविभ्रमभ्रूलतमुज्ज्वलाधरम्।
शुचिस्मितं कोमलगण्डमुन्नसं ललाटपर्यन्तविलम्बितालकम्॥३३॥*
खिलेहुए सुन्दर पद्मके समान जिनके मनोहर नेत्र हैं; विलासमयी भौंहें हैं, अमल अधर हैं, मधुर मुसकान है, कोमल कपोल, ऊँची नासिका और भालदेशमें लटकी हुई अलकें हैं [ऐसे आपको मैं कब आनन्दित करूँगा?] ॥३३ ।।