दिवि वा भुवि वा /divi va bhuvi va shloka
दिवि वा भुवि वा ममास्तु वासो नरके वा नरकान्तक प्रकामम्।
अवधीरितशारदारविन्दौ चरणौ ते मरणेऽपि चिन्तयामि॥८३॥*
हे नरकनाशक! मैं स्वर्ग, पृथ्वी या नरकमें ही क्यों न रहूँ, किन्तु शरत्कालीन कमलको तिरस्कृत करनेवाले आपके चरण-युगलको मरते समय भी याद करता रहूँ॥ ८३॥