F नास्था धर्मे न वसुनिचये /nashtha dharme shloka - bhagwat kathanak
नास्था धर्मे न वसुनिचये /nashtha dharme shloka

bhagwat katha sikhe

नास्था धर्मे न वसुनिचये /nashtha dharme shloka

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नास्था धर्मे न वसुनिचये /nashtha dharme shloka

नास्था धर्मे न वसुनिचये नैव कामोपभोगे

यद्यद्भव्यं भवतु भगवन्पूर्वकर्मानुरूपम्।

एतत्प्रार्थ्य मम बहु मतं जन्मजन्मान्तरेऽपि

त्वत्पादाम्भोरुहयुगगता निश्चला भक्तिरस्तु॥८२॥*

हे भगवन् ! मैं धर्म, धन-संग्रह और कामभोगकी आशा नहीं रखता, पूर्वकर्मानुसार जो कुछ होना हो सो हो जाय, पर मेरी यही बार-बार प्रार्थना है कि जन्म-जन्मान्तरोंमें भी आपके चरणारविन्द-युगलमें मेरी निश्चल भक्ति बनी रहे ॥ ८२ ॥ 

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 नास्था धर्मे न वसुनिचये /nashtha dharme shloka


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