नास्था धर्मे न वसुनिचये /nashtha dharme shloka
नास्था धर्मे न वसुनिचये नैव कामोपभोगे
यद्यद्भव्यं भवतु भगवन्पूर्वकर्मानुरूपम्।
एतत्प्रार्थ्य मम बहु मतं जन्मजन्मान्तरेऽपि
त्वत्पादाम्भोरुहयुगगता निश्चला भक्तिरस्तु॥८२॥*
हे भगवन् ! मैं धर्म, धन-संग्रह और कामभोगकी आशा नहीं रखता, पूर्वकर्मानुसार जो कुछ होना हो सो हो जाय, पर मेरी यही बार-बार प्रार्थना है कि जन्म-जन्मान्तरोंमें भी आपके चरणारविन्द-युगलमें मेरी निश्चल भक्ति बनी रहे ॥ ८२ ॥