F नाहं वन्दे तव चरणयो /naham vande tav shloka - bhagwat kathanak
नाहं वन्दे तव चरणयो /naham vande tav shloka

bhagwat katha sikhe

नाहं वन्दे तव चरणयो /naham vande tav shloka

नाहं वन्दे तव चरणयो /naham vande tav shloka

 नाहं वन्दे तव चरणयो /naham vande tav shloka

नाहं वन्दे तव चरणयो /naham vande tav shloka

नाहं वन्दे तव चरणयोर्द्वन्द्वमद्वन्द्वहेतोः

कुम्भीपाकं गुरुमपि हरे नारकं नापनेतुम्।

रम्या रामा मृदुतनुलता नन्दने नापि रन्तुं

भावे भावे हृदयभवने भावयेयं भवन्तम्॥८१॥

हे हरे! मैं आपके चरणयुगलमें इसलिये नमस्कार नहीं करता हूँ कि मेरे द्वन्द्व (शीतोष्णादि) नाश हों, कुम्भीपाकादि बड़े-बड़े नरकोंसे बचा रहूँ और नन्दनवनमें कोमलाङ्गी अप्सराओंके साथ रमण करूँ; अपितु इसलिये कि मैं सदा हृदय- मन्दिरमें आपकी ही भावना करता रहूँ ।। ८१ ॥

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 नाहं वन्दे तव चरणयो /naham vande tav shloka


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