श्रीवल्लभेति वरदेति दयापरेति /shri vallbheti vardeti shloka
श्रीवल्लभेति वरदेति दयापरेति
भक्तप्रियेति भवलुण्ठनकोविदेति।
नाथेति नागशयनेति जगन्निवासे-
त्यालापिनं प्रतिदिनं कुरु मां मुकुन्द॥८॥
हे मुकुन्द ! मुझे ऐसा बनाइये कि मैं-'हे रमानाथ! हे वरदाता! दयापरायण, भक्तप्रेमी, आवागमनको छुड़ानेमें चतुर, नाथ, शेषशायी, जगदाधार!'-इस प्रकार निरन्तर बोलता रहूँ॥ ८० ॥