ग्राहग्रस्ते गजेन्द्रे रुदति /grah graste gajendre shloka
ग्राहग्रस्ते गजेन्द्रे रुदति सरभसं ता_मारुह्य धावन्
व्याघूर्णन् माल्यभूषावसनपरिकरो मेघगम्भीरघोषः।
आबिभ्राणो रथाङ्गं शरमसिमभयं शङ्खचापौ सखेटौ
हस्तैः कौमोदकीमप्यवतु हरिरसावंहसां संहतेनः॥१३१॥
ग्राहसे ग्रस्त होकर गजेन्द्रके रोनेपर हाथों में चक्र, शर, तलवार, अभय, शङ्ख, चाप, भाला और कौमोदकी गदा धारण करके मेघकी- सी गम्भीर गर्जना करते हुए जो गरुड़पर चढ़कर शीघ्रतासे दौड़ पड़े और उस समय उतावालीके कारण जिनके हार, भूषण, कमरबन्द आदि तितर-बितर हो गये थे, वे भगवान् विष्णु हमारी पापसमूहसे रक्षा करें॥ १३१॥