किरातहूणान्ध्र पुलिन्द /kirat hunandhra pulinda shloka
किरातहूणान्ध्रपुलिन्दपुल्कसा आभीरकङ्का यवनाः खशादयः।
येऽन्ये च पापा यदपाश्रयाश्रयाः शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः॥१३०॥*
किरात, हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, आभीर, कङ्क, यवन और खश तथा अन्य पापीजन भी जिनके आश्रयसे शुद्ध हो जाते हैं, उन भगवान् विष्णुको नमस्कार है ॥ १३० ॥