तपस्विनो दानपरा यशस्विनो /tapasvino danpara shloka
तपस्विनो दानपरा यशस्विनो मनस्विनो मन्त्रविदः सुमङ्गलाः।
क्षेमं न विन्दन्ति विना यदर्पणं तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः॥१२९॥*
जिनको अर्पण किये बिना मङ्गलमय तपस्वी, दानी, यशस्वी, मनस्वी और मन्त्रवेत्ता किसी सुखको नहीं प्राप्त कर सकते, उन कल्याणकीर्ति भगवान्को नमस्कार है। १२९॥