F कल्पान्तक्रूरकेलिः /kalpanta krurakeli sloka - bhagwat kathanak
कल्पान्तक्रूरकेलिः /kalpanta krurakeli sloka

bhagwat katha sikhe

कल्पान्तक्रूरकेलिः /kalpanta krurakeli sloka

कल्पान्तक्रूरकेलिः /kalpanta krurakeli sloka

 कल्पान्तक्रूरकेलिः /kalpanta krurakeli sloka

कल्पान्तक्रूरकेलिः /kalpanta krurakeli sloka

कल्पान्तक्रूरकेलिः क्रतुकदनकरः कुन्दकर्पूरकान्तिः

क्रीडन्कैलासकूटे कलितकुमुदिनीकामुकः कान्तकायः।

कङ्कालक्रीडनोत्कः कलितकलकलः कालकालीकलत्रः

कालिन्दीकालकण्ठः कलयतु कुशलं कोऽपि कापालिकः कौ॥१३॥

कल्पान्त ही जिनकी दुर्ललित लीला है, जो दक्षयज्ञको विध्वंस करनेवाले हैं, जिनके शरीरकी कुन्द या कर्पूरकी-सी कान्ति है, जो कैलासपर्वतके शिखरपर क्रीड़ा कर रहे हैं, चन्द्रकलाको धारण करनेवाले, कान्तिमय शरीरधारी हैं, कङ्कालोंसे क्रीड़ा करने में उत्सुक हैं, कलकलध्वनि करनेवाले, कालरूप और कालीकान्त हैं तथा कालिन्दी (यमुनाजी) के समान जिनका श्यामल कण्ठ है, वे कोई कपालमालाधारी कापालिक इस पृथिवीतलपर हमारी कुशल करें॥ १३ ॥ 

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 कल्पान्तक्रूरकेलिः /kalpanta krurakeli sloka


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