F कस्योदरे हरविरिञ्च /kasyodare harvirincha shloka - bhagwat kathanak
कस्योदरे हरविरिञ्च /kasyodare harvirincha shloka

bhagwat katha sikhe

कस्योदरे हरविरिञ्च /kasyodare harvirincha shloka

कस्योदरे हरविरिञ्च /kasyodare harvirincha shloka

 कस्योदरे हरविरिञ्च /kasyodare harvirincha shloka

कस्योदरे हरविरिञ्च /kasyodare harvirincha shloka

कस्योदरे हरविरिञ्चमुखप्रपञ्चः

को रक्षतीममजनिष्ट च कस्य नाभेः।

क्रान्त्वा निगीर्य पुनरुद्रिति त्वदन्यः

कः केन चैष परवानिति शक्यशङ्कः॥१२॥*

भला, आपके सिवा और किसके उदरमें शिव, ब्रह्मा आदि यह सारा प्रपञ्च स्थित है, कौन इसकी रक्षा करता और किसकी नाभिसे यह उत्पन्न होता है? आपको छोड़कर कौन इसे अपने पैरोंसे मापकर [प्रलयकालमें] निगल जाता और पुनः [सृष्टिकालमें] बाहर प्रकट कर देता है; यह प्रपञ्च किसी दूसरेके अधीन है-ऐसी शङ्का भी कौन कर सकता है? ॥ १२ ॥ 

सूक्तिसुधाकर के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
 -click-Suktisudhakar shloka list 


 कस्योदरे हरविरिञ्च /kasyodare harvirincha shloka


Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3