त्वां शीलरूपचरितैः /tvam sheelrup charitaih shloka
त्वां शीलरूपचरितैः परमप्रकृष्ट-
सत्त्वेन सात्त्विकतया प्रबलैश्च शास्त्रैः।
प्रख्यातदैवपरमार्थविदां मतैश्च
नैवासुरप्रकृतयः प्रभवन्ति बोद्धम्॥१३॥*
आसुरी प्रकृतिवाले मनुष्य आपके लोकोत्तर शील, रूप, चरित्र, परम उत्तम सत्त्वगुण और सात्त्विक स्वभावद्वारा, आपको प्रबल शास्त्रों तथा देवसम्बन्धी परमार्थ (रहस्य) को जाननेवाले विख्यात पाराशरादि महर्षियोंके सिद्धान्तोंसे भी, यथावत् नहीं जान सकते ॥ १३ ॥