उल्लवितत्रिविधसीम /ullavita trividha seem shloka
उल्लवितत्रिविधसीमसमातिशायि-
सम्भावनं तव परिवढिमस्वभावम्।
मायाबलेन भवतापि निगुह्यमानं
पश्यन्ति केचिदनिशं त्वदनन्यभावाः॥१४॥*
परन्तु आपमें अनन्य भावना रखनेवाले कुछ भक्तजन आपके ऐश्वर्यको-जो देश, काल और वस्तुकी सीमासे रहित तथा अपने समान या अपनेसे अधिककी सम्भावनासे पृथक् है-निरन्तर देखते हैं, यद्यपि उसे आप अपनी मायाके बलसे छिपाये रखते हैं॥ १४॥