F कदा प्रेमोद्दारैः पुलकिततनुः/kda premo daraih shloka - bhagwat kathanak
कदा प्रेमोद्दारैः पुलकिततनुः/kda premo daraih shloka

bhagwat katha sikhe

कदा प्रेमोद्दारैः पुलकिततनुः/kda premo daraih shloka

कदा प्रेमोद्दारैः पुलकिततनुः/kda premo daraih shloka

 कदा प्रेमोद्दारैः पुलकिततनुः/kda premo daraih shloka

कदा प्रेमोद्दारैः पुलकिततनुः/kda premo daraih shloka

कदा प्रेमोद्दारैः पुलकिततनुः साश्रुनयनः

स्मरन्नुच्चैः प्रीत्या शिथिलहृदयो गद्गदगिरा।

अये श्रीमन्विष्णो बी रघुवर यदूत्तंस नृहरे

प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान्॥ ९७ ॥

प्रेमोद्गारोंसे पुलकितशरीर, सजलनयन और प्रेमसे शिथिलहृदय होकर गद्गद वाणीसे, 'हे श्रीमन् विष्णो! हे रघुवर! हे यदुवंशभूषण! हे नृसिंह! प्रसन्न होइये'-ऐसा उच्चस्वरसे कहता हुआ, मैं अपने दिनोंको क्षणके समान कब बिताऊँगा? ॥ ९७॥ 

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 कदा प्रेमोद्दारैः पुलकिततनुः/kda premo daraih shloka


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