कदा प्रेमोद्दारैः पुलकिततनुः/kda premo daraih shloka
कदा प्रेमोद्दारैः पुलकिततनुः साश्रुनयनः
स्मरन्नुच्चैः प्रीत्या शिथिलहृदयो गद्गदगिरा।
अये श्रीमन्विष्णो बी रघुवर यदूत्तंस नृहरे
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान्॥ ९७ ॥
प्रेमोद्गारोंसे पुलकितशरीर, सजलनयन और प्रेमसे शिथिलहृदय होकर गद्गद वाणीसे, 'हे श्रीमन् विष्णो! हे रघुवर! हे यदुवंशभूषण! हे नृसिंह! प्रसन्न होइये'-ऐसा उच्चस्वरसे कहता हुआ, मैं अपने दिनोंको क्षणके समान कब बिताऊँगा? ॥ ९७॥