F प्रभो वेङ्कटेश प्रभा भूयसी ते /prabho vyankatesha shloka - bhagwat kathanak
प्रभो वेङ्कटेश प्रभा भूयसी ते /prabho vyankatesha shloka

bhagwat katha sikhe

प्रभो वेङ्कटेश प्रभा भूयसी ते /prabho vyankatesha shloka

प्रभो वेङ्कटेश प्रभा भूयसी ते /prabho vyankatesha shloka

 प्रभो वेङ्कटेश प्रभा भूयसी ते /prabho vyankatesha shloka

प्रभो वेङ्कटेश प्रभा भूयसी ते /prabho vyankatesha shloka

प्रभो वेङ्कटेश प्रभा भूयसी ते तमः संछिनत्ति प्रदेशे ह्यशेषे।

अहो मे हृदद्रेर्गुहागूढमन्धन्तमो नैति नाशंकिमेतन्निदानम्॥९०॥

हे वेङ्कटेश्वर स्वामिन् ! आपकी मात्रामें फैली हुई प्रभा सारे संसारके अन्धकारका नाश करती है; किन्तु आश्चर्य है कि मेरे हृदयाचलकी गुहामें छिपा हुआ अन्धकार नष्ट नहीं होता है, इसका क्या कारण है? ॥ ९० ॥ 

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 प्रभो वेङ्कटेश प्रभा भूयसी ते /prabho vyankatesha shloka


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