प्रसादाभिमुखं शश्वत् /prasada bhimukham shloka
प्रसादाभिमुखं शश्वत्प्रसन्नवदनेक्षणम्।
सुनासं सुभ्रुवं चारुकपोलं सुरसुन्दरम्॥११५॥*
जो सदा कृपा करनेको उद्यत रहते हैं, प्रसन्नमुख और प्रसन्ननयन हैं, जिनकी नासिका, भौंहें और कपोल अतिसुन्दर हैं और समस्त देवताओंमें जो मनोहर हैं ॥ ११५॥