तरुणं रमणीयाङ्ग /tarunam ramni yang shloka
तरुणं रमणीयाङ्गमरुणोष्ठेक्षाणाधरम्।
प्रणताश्रयणं नृम्णं शरण्यं करुणार्णवम्॥११६॥*
जो तरुण हैं, कमनीयकलेवर हैं, जिनके ओष्ठ, अधर और नेत्र अरुण हैं, जो शीश झुकानेवालोंको आश्रय देनेवाले, अपार सुखदायक, शरणागतवत्सल और करुणाके सागर हैं॥ ११६॥