प्रसन्नवक्त्रं नलिनायतेक्षणं /prasanna vaktram shloka
प्रसन्नवक्त्रं नलिनायतेक्षणं कदम्बकिञ्जलकपिशङ्गवाससम्।
लसन्महारत्नहिरण्यमयाङ्गदं स्फुरन्महारत्नकिरीटकुण्डलम्॥१११॥
जो प्रसन्नवदन हैं, कमलके समान विशाल लोचन हैं, कदम्बकेसरके सदृश पीताम्बर ओढ़े हुए हैं, जिनके रत्नखचित स्वर्णमय भुजबन्द सुशोभित हैं तथा बहुमूल्य रत्नमय किरीट और कुण्डल देदीप्यमान हो रहे हैं, १११॥