उन्निद्रहृत्पङ्कज कर्णिकालये /unidra hrat pankaj shloka
उन्निद्रहृत्पङ्कजकर्णिकालये योगेश्वरास्थापितपादपल्लवम्।
श्रीलक्ष्मणं कौस्तुभरत्नकन्धरमम्लानलक्ष्या वनमालयाञ्चितम्॥११२॥*
जिनके चरण-कमलोंको योगीश्वरोंने अपने हृदयरूप खिले हुए कमलकोषमें स्थापित कर रखा है, जो श्रीवत्सचिह्नको धारण किये रहते हैं, कौस्तुभमणिसे जिनकी ग्रीवा सुशोभित हो रही है और जो अमन्द कान्तिमयी वनमालासे सुशोभित होते हैं॥ ११२॥