तृष्णातोये मदनपवनो /trishna toye madan pavno shloka
तृष्णातोये मदनपवनोद्भूतमोहोर्मिमाले
दारावर्ते तनयसहजग्राहसङ्घाकुले च।
संसाराख्ये महति जलधौ मज्जतां नस्त्रिधामन
पादाम्भोजे वरद भवतो भक्तिभावं प्रदेहि॥८५॥*
हे सर्वव्यापी! हे वरदाता ! तृष्णारूपी जल, कामरूपी आँधीसे उठी हुई मोहमयी तरङ्गमाला, स्त्रीरूप भँवर और भाई-पुत्ररूपी ग्राहोंसे भरे हुए इस संसाररूपी महान् समुद्रमें डूबते हुए हमलोगोंको अपने चरणारविन्दकी भक्ति दीजिये॥ ८५॥